प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 23)
प्रेमम (भाग : 23)
अरुण तेजी से नीचे गिरता जा रहा था, जमीन तेजी से करीब आती हुई नजर आ ही थी मगर अरुण के चेहरे पर कोई भाव न थे, मानो यह सब उसकी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हो। सामने एक ऊंचे पेड़ से मोटी बेल लटक रही थी, अरुण की आँखे चमक उठी, उसने अपने बदन को इस कोण पर सेट किया कि वह बेल उसके हाथ लग सके। अगले ही पल अरुण झूलता हुआ सड़क के किनारे जा पहुंचा, दोलन करती हुई बेल पुनः तेजी से विपरीत दिशा में लौटने लगी, अरुण ने बेल को छोड़ दिया, वह धड़ाम से सड़क पर आ गिरा। तेजी से धड़धड़ाते हुए आ रहा ट्रक उससे टकराने ही वाला था कि बस उससे सटकर रुक गया, ढलान के कारण ट्रक को कंट्रोल कर पाना मुश्किल था मगर ड्राइवर जैसे अपनी पूरी जान लगाकर ब्रेक पर खड़ा हो गया था।
"ओये! पिया हुआ है के? मरने का है तो कहीं और जा के मारो, काहे को हमें फँसवा रहे हो भाई!" ड्राइवर चीखता हुआ बोला। अरुण उसकी बातों पर ध्यान न देते हुए खड़ा होते हुए सड़क की दूसरी ओर चला गया। ड्राइवर ने अपने आप पर संयम रखते हुए बिना कुछ बोले वहां से निकल गया।
'इस ट्रक पर वह निशान नहीं था। न ही उसका ड्राइवर कुछ अजीब लगा, मगर हम पर हुए ब्लैंक के हमले ने हर बार यह सिद्ध किया है कि वो हमारे आसपास ही है। मगर कहाँ? मुझे इस पूरे इलाके को चेक करना होगा।' अरुण अपने कपड़ों पर लगी धूल मिट्टी को झाड़ते हुए सोच में डूबा हुआ था। तभी वहां से एक दूसरा ट्रक गुजरा, वह भी बिल्कुल सामान्य ही महसूस हो रहा था। अरुण उसी मोड़ के किनारे एक चट्टान के पीछे छिपकर सभी ट्रकों पर नजर रखने लगा। एक के बाद एक कई ट्रक गुजर गए, अरुण को अब गुस्सा आने लगा था, उसे लगने लगा कि वह किसी काम का नहीं है। मन ही मन उसने खुद को हजार लानतें भी दे दी।
"शायद मैंने जो देखा वो मेरा भरम था? मगर अरुण को…." तभी अरुण को कुछ दिखा, अगले ही पल वह अदृश्य हो गया मगर इतना वक़्त काफी था। "अरुण कभी गलत नहीं होता!" अरुण की आँखे सुर्ख लाल हो चुकी थीं उसकी मुट्ठियां उसके पिस्टल पर कसने लगीं।
सामने से एक ट्रक तेजी से आ रहा था जो कैम्पटी फाल्स की ओर बढ़ रहा था, अरुण हाथ में पिस्टल लिए उन्हें रुकने की चेतावनी देते हुए सड़क के बीच में खड़ा हो गया। यह देखकर ट्रक का ड्राइवर हैरान हो गया।
"ये क्या कर रहा है साला!" ड्राइवर गुस्से से चिल्लाया।
"कुछ भी कर रहा हो, चढ़ा दी साले पर, ऐसे एक्सीडेंट रोज होते रहते हैं हमारे यहाँ, एक और सही!" ड्राइवर के बगल में बैठा हुआ लंबी दाढ़ी वाला बलिष्ठ युवक तूल देते हुए बोला।
"आखिरी वार्निंग दे रहा हूँ। रुक जाओ!" अरुण उनकेई ओर पिस्टल तानते हुए जोर से बोला।
"देते रह! ये तेरी ज़िंदगी की आखिरी वार्निंग होगी। सुमेर, कुचल दे साले को!" वही युवक फिर से बोला।
"कहीं इसे हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया इकबाल?" उस युवक के बगल में बैठा दूसरा युवक बोला।
"टैब तो पक्का कुचल दे! साले को आज दोज़ख के दर्शन करवा ही देते हैं। बड़ा आया है हीरो बनने!" इतना सुनते ही सुमेर ने एक्सीलेटर पर अपनी पूरी ताकत लगा दी, ट्रक किसी रेसिंग कार की तरह आगे बढ़ी।
"मैंने तो बस ऐसे ही मजाक किया था पर तुम लोग सीरियस ले गये बच्चों, अब तुम्हें कम से कम आई सी यू तक पहुँचाना तो मेरा फ़र्ज़ बनता है।" अरुण गुर्राया, इस समय वह किसी शैतान से कम नजर नहीं आ रहा था। वह अब भी हटने की कोशिश नहीं कर रहा था, ट्रक अब उससे बस दो फुट की दूरी पर था, ये दूरी एक सेकंड से कम समय में समाप्त होने वाली थी, अरुण हरकत में आया, तर्जनी उंगली ट्रिगर पर कसती चली गयी, गोली सीधा फ्यूल टैंक से जा टकराई, अगली गोलियां दोनों अगले टायरों को बर्स्ट कर चुकी थीं। अरुण के होंठो पर अजीब से मुस्कुराहट थी, वह थोड़ा पीछे हटता चला गया, ड्राइवर और उसे दोनों साथ उसकी इस हरकत से बिल्कुल हैरान थे। सुमेर अपनी पूरी ताक़त से ब्रेक लगाकर ट्रक को पीछे जाने से रोकने की कोशिश कर रहा था। अरुण ने अपने पिस्टल के मुँह को फूंकते हुए अगली गोली सड़क पर चला दी, सड़क से टकराते ही चिंगारी निकली जो वहां फैले तेल में मिल गयी। अगले ही पल वहां तेजी से आग की लपट उठी।
"अबे ओये क्या कर रहा है?" सुमेर चिल्लाते हुए बोला।
"मैंने कहाँ कुछ किया, कुछ ट्रक हादसे ऐसे भी होते हैं। तुम्हारा ट्रक, तुम्हारा डीजल, तुम लोग जल रहे हो मैं कहाँ कुछ कर रहा हूँ!" अरुण ने उन्हें घूरते हुए कहा।
"इसने एक्सीडेंट वाली बात कब सुनी?" यह सुनकर वह दूसरा युवक बहुत हैरान था।"
"अभी इसे क्या पता चला कैसे पता चला ये सब छोड़ो और अपनी जान बचाओ!" सुमेर चीखा।
"न..न..न ये गलती न करना मुन्ना वरना अपनी जान से हाथ धो बैठोगे!" अरुण ने पुचकारते हुए कहा।
"अजीब पागल आदमी है! हमने इसका क्या बिगाड़ा है जो ये हमें जलाने पर तुला हुआ है।"
"तू छुपकर मेहरान! साला इतना बॉडी सोडी बनाने का कोई फायदा नहीं, तुझे तो घर पे बैठ के चूड़ियां बेचनी चाहिए थी।" इकबाल गुस्से से बिफर पड़ा। "अभी तक शायद हमने इसका कुछ न बिगाड़ा हो पर अब बिगाड़ेंगे।" इकबाल अपने सीट के नीचे से एक आधुनिक गन निकालते हुए बोला।
"जल्दी कर इकबाल! अगर आग बारूद तक पहुँची तो ट्रक उड़ जाएगा।" सुमेर चीखने लगा। इकबाल सामने के शीशे को तोड़ते हुए आगे की ओर बाहर कूदा, उसके साथ वो दोनों भी हाथ में गन लिए कूद पड़े, ब्रेक से।पैर हटते ही ट्रक पीछे की ओर जाने लगा। अगले ही पल उसमे भयंकर विस्फोट हुआ, ट्रक पीछे की ओर लुढ़कते एक खाई में गिर गया।
"तू कौन है? तूने हमारा बहुत नुकसान कर दिया हम तुझसे तेरी जान जुदा कर देंगे।" इकबाल आग बबूला होते हुए अरुण पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा। अरुण बड़ी ही कुशलता और कमाल की फुर्ती से उन गोलियों से बच रहा था। वह गोलियों से बचने के आर्ट में माहिर था, जैसे ही गोली उसके करीब पहुँचती वह बिजली की तेजी से उस स्थान को छोड़ चुका होता।
"तूने हमारा ट्रक जलाया है, हम तुझे जलाकर खाक कर देंगे!" मेहरान भी लगातार फायर झोंके जा रहा था।
"ऐसी कोशिश तुमसे पहले तुम्हारे बाप ने भी की थी बच्चों! मगर अरुण कोई मोम का पुतला नहीं है जिसे कोई भी जला दे! अगर तुम्हारी एक।गोली मुझे छू भी गयी तो मैं खुद ही खुद को गोली मार लूंगा।" अरुण की एक सटीक गोली सुमेर का दाहिना कंधा चीरते हुए निकल गयी। सुमेर जोर से चीखता हुआ अपने जगह पर बैठकर छटपटाने लगा।
"लगता है तुम्हारे बाप को कोई आशंका नहीं थी कि यहां उसका बाप भी आ सकता है इसलिए उसने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया, देखो मैं सिखाता हूँ तुमने!" मेहरान की गोलियों से बचते हुए अरुण का मुक्का उसके थोड़े से टकराया, मगर मेहरान टस से मस भी न हुआ।
अपने करीब पाकर इकबाल ने उसपर गन तान दिया, मगर ट्रिगर दबाते ही खट्ट की आवाज आई, उसकी गोलियां खत्म हो चुकी थी। उसने झप्पटा मारते हुए अरुण को अपनी बांजुओ में जकड़ लिया। मौके का फायदा उठाते हुए मेहरान ने उसके जबड़े पर जोरदार घूसा जड़ दिया। मेहरान का वार जबरदस्त था, अरुण के होंठ फट गए थे, उनसे खून निकलने लगा मगर उसकी आँखों में अजीब सी मुस्कुराहट थी। मेहरान ने अपनी पूरी ताकत से अरुण के पेट पर लात मारा, उसके मुँह से खून निकलने लगा मगर अब तक उसने उफ तक ना किया था।
"बस इतनी ही जोर से मार सकते हो?" अरुण किसी शेर के मानिंद गुर्राया। जिसे सुनकर पल भर को मेहरान जैसे मजबूत कलेजे वाले का दिल भी कांप गया।
"बहुत बोलता है तू!" इकबाल का बढ़ता जा रहा था, अरुण को अपनी साँसे रुकती हुई महसूस हुईं, मेहरान दौड़ते हुए अरुण पर उछला, उसके अगले ही पल अरुण हवा में लहराया, मेहरान की लात इकबाल से जा टकराई, पलभर को उसकी पकड़ ढ़ीली हुई, अरुण आजाद हो चुका था। इससे पहले उन दोनों में से कोई सम्भल पाता हवा में लहराते हुए अरुण ने मेहरान का जबड़ा बुरी तरह से तोड़ दिया, इसके बाद वो फ्रंट फ्लिप लेते हुए अपने पांव जोड़े इकबाल से टकराया, इकबाल पीठ के बल जमीन पर जा गिरा। अरुण उछलते हुए अपने घुटने से उसकी छाती पर वार किया, कड़क की हल्की ध्वनि उत्पन्न हुई, इकबाल की हड्डियां टूट चुकी थी। तभी अरुण को हल्की सरसराहट महसूस हुई वह तेजी से नीचे झुक गया, गोली उसके बालो को छूती दूसरी ओर गुजर गई। उसने दूसरी ओर देखा, सुमेर गन थामे उसकी ओर बढ़ रहा था। सुमेर उसपर लगातार फायरिंग करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, उछलकूद करते हुए अरुण अब थकता जा रहा था।
"मरा नहीं तू अब तक?" अरुण की गोली उसका सिर फोड़कर दूसरी ओर निकल गयी।
"अगर ज़िंदा रहना चाहते हो तो अपने बाप का पता बताओ!" अरुण ने अपने जूते की बगल से खंजर निकालते हुए बोला। मेहरान का सिर को उसने अपने जूते से कुचला हुआ था। इकबाल अभी उठ सकने की हालत में नहीं था।
"क… कभी नहीं!" मेहरान ने दृढ़ स्वर में कहा।
"अब तू अपने जिंदा होने पर पछतायेगा।" अरुण गुस्से से भरता जा रहा था।
"हम मौत से नहीं डरते। हमारे लिए बस मक़सद मायने रखता है।" मेहरान दृढ़ता से गुर्राया।
"तुझे मार कौन रहा है पगले!" कहते हुए अरुण के।होंठो पर रहस्यमय मुस्कान थम गई, वह अपने दाहिने हाथ से खंजर को नचाने लगा। एक पल को मेहरान सोच में पड़ गया कि ये क्या करने वाला है पर इसके लिए उसे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, अगले ही पल उसे जवाब मिल चुका था। खंजर उसकी बायीं आँख में घुस चुकी थी, वह दर्द से बिलबिला उठा, उसकी चीख वातावरण में गूँजने लगी।
"अहह.. मुझे मार दो प्लीज!" वह जोर जोर से गिड़गिड़ाने लगा।
"अपने बाप का पता बताओ!" अपने एक एक शब्द को चबाते हुए अरुण ने खंजर पर थोड़ा और दबाव बढ़ाया। और पास की मिट्टी उठाते हुए उसकी आँखों में मिट्टी भर दिया और फिर से खंजर घूसा दिया। मेहरान भीषण दर्द से चीखता रहा।
"अहह..! नहीं, मुझे नहीं पता है।" मेहरान चीखने लगा।
"झूठ मत बोल साले!" अरुण गुर्राया।
"मैं झूठ नहीं बोल रहा। मेरा यकीन करो प्लीज!" वह बुरी तरह से रो पड़ा था। एक पल अरुण ने दबाव थोड़ा कम कर दिया, अगले ही पल मेहरान का हाथ हरकत में आया, उसने अपनी जेब से कुछ निकाला और गटक गया। अगले ही पल उसके मुंह से नीला झाग निकलने लगा, थोड़ी ही देर में वह इस भीषण दर्द से मुक्त हो चुका था। अब तक इकबाल को होश आया चुका था, उसने उठने की कोशिश किया मगर नाकाम रहा, अरुण को अपनी ओर बढ़ते देख उसने भी कुछ निगल लिया, अगले ही पल उसकी भी हालत मेहरान की तरह हो चुकी थी।
"शिट! इनका मकसद! कैसा है ये मक़सद जो मासूमों की जान से खेल रहा है। तू अब ज्यादा दिन तक बचेगा नहीं ब्लैंक! तेरे सभी गुर्गों की अंतिम यात्रा लेकर तेरे पास आऊंगा।" अरुण गुस्से से चीखने लगा। उसने उन तीनों की लाशो को वहीं छोड़ा और आगे बढ़ गया।
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"लड़की, है भागी खोल के घर की खिड़की, और कड़की, मेरे कानों में मेरे बाप की बिजली…!"
"यह क्या कर रहे हो?" क्रेकर ने मशीनी आवाज में पूछा।
"दिख नही रहा कितना परेशान हो रहा हूँ, मेरा बाप की होने वाली बहू उन्हें बिना बताए अपने प्रेमी संग फरार हो चुकी है।" अनि ने झुँझलाते हुए बोला, जैसे वो बहुत परेशान हो रहा हो।
"तो क्या ऐसे परेशान हुआ जाता है?" क्रेकर ने नम्य स्वर में पूछा।
"अबे यार तुझे बनाने वाले ने मेरी हेल्प करने के लिए यहां भेजा है या मेरा भेजा खाने को?" अनि गुस्से से उबल पड़ा।
"मगर मैं तो कुछ भी नहीं खा सकता।" किसी ने किसी मासूम बच्चे की तरह जवाब दिया।
"ठीक है मेरे माईं-बाप मेरा मतलब … तुम जो भी हो केकर मेकर। थोड़ा वहम कर दो हम पे!" अनि ने सिर खुजलाते हुए कहा।
"सॉरी सर! मैं क्रेकर हूँ!" क्रेकर ने बिल्कुल सामान्य स्वर में कहा।
"ठीक है तुम जो भी मिस्टर तोड़ू-फोड़ू! पर ये लड़की कहा गयी मेरा दिल तोड़कर, मुझे तन्हा यहां छोड़कर!" अनि ने रोनी सूरत बना ली, अब तक वे मार्किट से बाहर आ चुके थे।
"तुम तो ब्रह्मचारी हो न? फिर ये शायरीबाजी क्यों?" क्रेकर ने अगला सवाल दागा।
"अबे ये शायरी नहीं मेरा दुख है। साला तुम क्या जानो दुख! हाये मेरी किडनी! हाये मेरी फेफड़ा..कहाँ गई छोड़कर मेरे छाती पर केकड़ा!" अनि लगभग रोते हुए बोला। 'कही इसके पीछे ब्लैंक तो नहीं! मुझे जल्दी से पता लगाना होगा!'
क्रमशः….
Seema Priyadarshini sahay
29-Nov-2021 04:33 PM
बहुत खूबसूरत..👌👌
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